तू हज़ार बार भी रूठे तो मना लूँगा तुझे
मगर देख मोहब्बत में शामिल कोई दूसरा ना हो
देखी है बेरुखी की आज हम ने इन्तेहाँ
हमपे नजर पड़ी तो वो महफ़िल से उठ गए
तेरी निगाह में एक रंग-ए-अजनबियत था
किस ऐतबार पे हम खुल के गुफ्तगू करते
है इश्क़ की मंज़िल में हाल कि जैसे
लुट जाए कहीं राह में सामान किसी का
मुकम्मल ना सही अधूरा ही रहने दो
ये इश्क़ है कोई मक़सद तो नहीं है
वजह नफरतों की तलाशी जाती है
मोहब्बत तो बिन वजह ही हो जाती है
मेरी ज़िंदगी के हिस्से की धुल हो तुम
जो दिल में खिले वो फूल हो तुम
अब मेरे हर लम्हे में क़ुबूल हो तुम
जिस रोज तुमसे गले मिले हैं….
मुर्शाद मेरा दिल तुम्हारा नाम लेना लग गया है
सब खुशियां तेरे लिए तेरा दिल मेरे लिए
मेरे दिल में तू रहे हर लम्हा खुशी का साथ रहे
है इश्क तो फिर असर भी होगा,
जितना है इधर , उधर भी होगा